।।। एकांत ।।।
(1)
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सब ने देखा फूल सा खिलता सदा जिसका बदन ।
कोई क्या जाने कि वह कैसे जिया एकांत में ।।
जिन लवों की बात सुन सब खिलखिलाते मस्त हो।
बुदबुदाते हैं वही लव बैठकर एकांत में ।।
लोग ऐसे भी जिन्होंने जन्म से ही जुल्म ढाए।
वह भी रोते हैं कभी कुछ सोचकर एकांत में ।।
एक घर है जिसको वह मंदिर समझता था कभी।
आज उसके द्वार तक जाता है पर एकांत में ।।
मद भरे मादक नयन मदिरा पिला मदहोश करते।
खुद बुझाते प्यास अपनी अश्रु से एकांत में ।।
है किसे फुर्सत लगाए आंसुओं का जो गणित।
कौन जाने किसने कब कितने पिये एकांत में ।।
दोस्त तुमने आजतक जग की सुनी जग से मिले हो।
पर कभी अपनी सुनो खुद से मिलो एकांत में ।।
शोरगुल से दूर तुमको जब कभी फुर्सत मिले।
जी के देखो जिन्दगी क्षणभर कभी एकांत में ।।
।।। भटका राही ।।। (2)
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मैं मंजिल से भटका राही
थका हुआ एक वीर सिपाही
मन से बड़ा साहसी लेकिन,
तन से टूट गया
कारवाँ पीछे छूट गया ।।
ज्ञान नहीं कुछ मुझे डगर का
किसी नगर का किसी भँवर का
अपनों से मिलवाने वाला,
खो चित्रकूट गया
कारवाँ पीछे छूट गया ।।
रस्ते में टापू पर अटका
लहरों में बेकाबू भटका
ठगिया बन्दरगाह लुटेरा,
सब कुछ लूट गया
कारवाँ पीछे छूट गया ।।
चारों ओर निशा का पहरा
स्वर्णिम प्रात छिप गया गहरा
नदिया चढ़ती देख,
मनोबल मेरा टूट गया
कारवाँ पीछे छूट गया ।।
बिखर गए सब स्वप्न हमारे
हुए किनारे सभी किनारे
चप्पू टूट गये नइया में,
सोता फूट गया
कारवाँ पीछे छूट गया ।।
।।। सर्प है यह आदमी की देह में ।।। ( 3 )
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याद रक्खो जो हुआ मालूम
कि तुम चाहते छूना गगन को
तो तुम्हारी देह
यैसी कब्र में दफनाऊंगा
कि जहां पर
कल्पना दम तोड़ देगी
और तेरी आत्मा
नई मोड़ लेगी
रूह भी तेरी कभी
मुझसे कहीं टकरायेगी
तो हमारी शक्ल से घबरायेगी
और दूर रुककर के
सड़क के मोड़ पर
कल्पना के साथ
यह बतयायेगी
कि सामने बैठा वहां जो हंस रहा है
नीच पापी दुष्ट सबको डस रहा है
सर्प है यह आदमी की देह में ।।
मैं इसे अच्छी तरह पहचानती हूँ
इसके नस नस की कहानी जानती हूँ
आजतक चुप रह जुलम सहती रही
पर बहन तुमसे व्यथा ये बयानती हूँ
कि इसकी इस हंसी ने एक दिन
मुझको लुभाया था
और अपने जाल में
यैसा फसाया था
कि आज हाथी जिस्म थाती है
इसी के गेह में ।
सर्प है यह आदमी की देह में ।।
काश जो यह देह मेरे साथ होती
तो चाँद तारों से हमारी बात होती
क्रूर के घर पूर्णिमा को भी अंधेरा व्याप्त होता
और हमारे घर अमां भी चाँदनी की रात होती
त्रास पीड़ा यातना कुंठा कसक और वेदना ने
कर दिया बेवश मुझे मुंह खोलने को
और चुप्पी की घुटन के दर्द से व्याकुल
तड़प उट्ठे सिले लब बोलने को
यै दोस्त अब भी जा संभल है छल
भरा इस नेह में
सर्प है यह आदमी की देह में ।।
।।। प्यारा हिन्दुस्तान ।।। (4)
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चलें प्रगति के पथ पर मिलकर करें विश्व कल्याण।
मार्ग प्रशस्त करें उन्नति का बड़े देश का मान।
हमारा प्यारा हिंदुस्तान, जगत से न्यारा हिंदुस्तान ।।
जोड़ प्रेम का सबसे नाता
सत्य अहिंसा धर्म सिखाता
हमें कुरान बाइबल गीता रामायण का ज्ञान ।
हमारा प्यारा हिन्दुस्तान, जगत से न्यारा हिन्दुस्तान ।।
छत्रसाल पहना रणबाना
चंपत राय शिवाजी राणा
अंधे होकर तीर चलाते प्रथ्वीराज चौहान ।
हमारा प्यारा हिन्दुस्तान, जगत से न्यारा हिन्दुस्तान ।।
धन्य भगत सिंह से परवाने
राजगुरू सुखदेव दीवाने
हँसकर फाँसी के फंदे पर किया प्राण का दान ।
हमारा प्यारा हिंदुस्तान जगत से न्यारा हिंदुस्तान ।।
शौर्य दिखाये रणधीरों ने
शीश कटाये रणवीरों ने
दांत सिंह के गिनते बालक, हम उनकी संतान ।
हमारा प्यारा हिन्दुस्तान जगत से न्यारा हिन्दुस्तान ।।
हमको दुश्मन का क्या डर है
हर नर शंकर प्रलयंकर है
पारथ के रथ पर माधव हैं ध्वज पर हैं हनुमान ।
हमारा प्यारा हिन्दुस्तान जगत से न्यारा हिन्दुस्तान ।।
घर घर अलख जगाना हमको
भारत स्वर्ग बनाना हमको
भरना है कुमलित सुमनों में मधुर मधुर मुश्कान ।
हमारा प्यारा हिन्दुस्तान जगत से न्यारा हिन्दुस्तान ।।